एक कविता जिसने बचपन में हमेशा मेडल दिलवाये ...जिससे बहुत सी यादें जुडी हैं :-)
-----------
"इतिहास की परीक्षा थी,...इतिहास की परीक्षा थी ..,यह सोच के ह्रदय धड़कता था , घर से निकलते ही बायाँ नयन फड़कता था"
तुम बीस मिनट लेट हो ...तुम बीस मिनट लेट हो..." द्वार पर चपरासी ने बतलाया
मैं मेल ट्रेन की रफ्तार से कमरे के भीतर आई "
"यह १०० नम्बर का पर्चा था मुझको २ की भी आस नहीं,
चाहे सारी दुनिया पलटे, पर मैं हो सकती पास नहीं ...पर मैं हो सकती पास नहीं ॥!"
फिर आँख मूंद के बैठ गयी, बोली- " भगवान् दया कर दें , इन प्रश्नों के उत्तर दिमाग में ठूंस-ठूंस के भर दें".
आकाश फूट अम्बर से आई इक गहरी आवाज़ - "ऐ मूर्ख व्यर्थ क्यों रोती है? तू आँख उठा के इधर देख गीता कहती है , 'कर्म करो फल की चिंता मति किया करो '.. जो मन् में आये बात वही उत्तर पुस्तिका में लिख दिया करो "
मैंने लिख दिया ...मैंने लिख दिया ................" पानीपत का दूसरा युद्ध कठसवान में जापान और जर्मनी के बीच १८५७ में हुआ था......"
मैंने लिख दिया ...मैंने लिख दिया ................" महात्मा गाँधी महात्मा बुध के चेले थे ...गाँधी जी के संग बचपन में आँख मीचौली खेले थे"
मैंने लिख दिया ...मैंने लिख दिया ................"महाराणा प्रताप ने था महूमद गौरी को १० बार हराया ...अकबर ने हिंद महासागर अमेरिका से मँगवाया ..."
मैंने लिख दिया ...मैंने लिख दिया ................" मोहम्मद गजनवी रोज़ सुबह उठ कर २ घंटे नाचता था ... औरंगजेब रण में जा के औरों की जेबें काटता था "
लिख दिया अंत में "इतिहास की कोई बात न सच्ची ....इसको पढना व्यर्थ की माथापच्ची "!!
हो गया ............., हो गया परीक्षक पागल सा मेरी कापी देख देख....,
बोला ..."इन सारे बच्चों में होनहार बस यही एक ....होनहार बस यही एक "
औरों के सब पर्चे फ़ेंक दिए .....!
मेरे सब नम्बर छांट लिए......!!
"जीरो नंबर दे के बाकि सब नम्बर काट लिए :-( .....!!!"
.
0 comments:
Post a Comment